
एक बार एक समाजसेवी संस्था ने गरीब बच्चों के लिए एक छोटा-सा कार्यक्रम आयोजित किया। खेल, मिठाइयाँ और रंग-बिरंगे गुब्बारे — हर बच्चे की आँखों में चमक थी।
वहाँ एक छोटा लड़का था — नाम था अर्जुन। उसके कपड़े फटे हुए थे, पैर में चप्पल नहीं थी, लेकिन उसके चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी जो सबका ध्यान खींच रही थी।
संस्था की एक महिला ने उससे पूछा,
“तुम इतने खुश कैसे हो बेटा? तुम्हारे पास तो कुछ भी नहीं है।”
अर्जुन ने मासूमियत से कहा,
“मैडम, मेरे पास ये गुब्बारा है — और ऊपर नीला आसमान। और क्या चाहिए? मुझे उड़ते हुए रंग अच्छे लगते हैं।”
महिला की आँखें भर आईं। उस पल उसे समझ आया कि खुशी चीज़ों में नहीं, नजर में होती है। अर्जुन के पास ज़िंदगी की सबसे बड़ी दौलत थी — संतोष और जज़्बा जीने का।
सीख:
हमेशा ज़्यादा पाने की दौड़ में मत भागो,
कभी-कभी एक गुब्बारा और खुला आसमान ही ज़िंदगी को पूरी बना देते हैं।
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